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धर्म एवं दर्शन >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित

सूक्तियाँ एवं सुभाषित

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :95
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9602

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अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।


6. जब तक तुम स्वयं अपने में विश्वास नहीं करते, परमात्मा में तुम विश्वास नहीं कर सकते।

7. अशुभ की जड़ इस भ्रम में है कि हम शरीर मात्र हैं। यदि कोई मौलिक या आदि पाप है, तो वह यही है।

8. एक पक्ष कहता है, विचार जड्वस्तु से उत्पन्न होता है, दूसरा पक्ष कहता है, जडवस्तु विचार से। दोनों कथन गलत हैं जड़वस्तु और विचार, दोनों का सहअस्तित्व है। वह कोई तीसरी ही वस्तु है, जिससे विचार और जड़वस्तु दोनों उत्पन्न होते हैं।

9. जैसे देश में जड़वस्तु के कण संयुक्त होते हैं, वैसे ही काल में मन की तरंगे संयुक्त होती है।

10. ईश्वर की परिभाषा करना चर्वितचर्वण है; क्योंकि एकमात्र परम अस्तित्व, जिसे हम जानते है, वही है।

11. धर्म वह वस्तु है, जिससे पशु मनुष्य तक और मनुष्य परमात्मा तक उठ सकता है।

12. बाह्य प्रकृति अन्तःप्रकृति का ही विशाल आलेख है।

13. तुम्हारी प्रवृत्ति तुम्हारे काम का मापदण्ड है। तुम ईश्वर हो और निम्नतम मनुष्य भी ईश्वर है, इससे बढ़कर और कौनसी प्रवृत्ति हो सकती है?

14. मानसिक जगत् का पर्यवेक्षक बहुत बलवान और वैज्ञानिक प्रशिक्षणयुक्त होना चाहिए।

15. यह मानना कि मन ही सब कुछ है, विचार ही सब कुछ है - केवल एक प्रकार का उच्चतर भौतिकतावाद है।

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